Friday, 12 July 2013

लाइक्स पर राजनीति

- डॉ. हनुमान गालवा
लाइक्स खरीदकर लायक बनने की तारीफ हो रही है या लाइक्स नहीं खरीद पाने की अपनी ना-लायकी को कोसा जा रहा है। जो आरोप लगा रहे हैं, वे भी जानते हैं और जिन पर आरोप लगाए जा रहे हैं, वे भी मानते हैं कि राजस्थान की जनता ने किसी के पक्ष में स्पष्ट जनादेश नहीं दिया था। खंडित जनादेश को 'लाइक्सÓ का जुगाड़ करके स्पष्ट जनादेश में कनवर्ट किया गया था। सही मायने में जुगाड़ की यह कलाबाजी ही लोकतंत्र है। जो इसमें निपुण हैं, वे बिना बहुमत के भी सरकार चला लेते हैं। जो अनाड़ी हैं, वे सत्ता के किनारे आकर भी सत्तासुख से वंचित रह जाते हैं। वैसे भी इस समय देश की राजनीति 'लाइक्सÓ की धुरी पर ही घूम रही है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक जानते हैं कि वे पद पर तभी तक हैं, जब तक उनको मैडम लाइक कर रही हैं। तमाम कांग्रेसी भी उसी को लाइक करते हैं, जिनको मैडम या युवराज लाइक करते हैं। जिसको मैडम या युवराज लाइक करते हैं, उसको कांग्रेस के तमाम लाइक्स की पूर्णाहुति मान ली जाती है। कांग्रेस के लिए लाइक्स दवा है तो भाजपा के लिए यह बीमारी। भाजपा में पीएम इन वेटिंग नए दावेदार को अनलाइक करते हैं तो नए दावेदार अपने सिवाय किसी को लाइक नहीं करते। एनडीए के प्रमुख घटक जदयू ने भाजपा को महज इसलिए अनलाइक कर दिया कि भाजपा ने प्रधानमंत्री के नए दावेदार को लाइक कर दिया। लाइक-अनलाइक के पेच में उलझी भाजपा के रणनीतिकारों को प्रधानमंत्री की दावेदारी के मायाजाल से बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। ऐसे में भाजपा की इस बला को कांग्रेस शासित राज्य का कोई मुख्यमंत्री खरीद रहा है तो भाजपा नेताओं को तो खुश होना चाहिए। अलबता कांग्रेस को इस मुद्दे पर जरूर कठघरे में खड़ा किया जा सकता है कि लाइक्स खरीदने ही थे तो अपने ही देश में खरीद लेते हैं। यहां जब सभी बिकाऊ हैं तो फिर विदेशियों से लाइक्स खरीदकर बिकने की अपनी क्षमता पर सवाल क्यों खड़ा किया?


न्यूज टुडे जयपुर के 12 जुलाई के अंक में प्रकाशित व्यंग्यhttp://newstoday.epapr.in/135116/Newstoday-Jaipur/12-07-2013#page/5/1
 

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