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रंग लाएगा माफीनामा
- डॉ. हनुमान गालवा
खाकी अपनी छवि सुधारने को लेकर चिंतित है। अब खाकी को सिखाया-समझाया जा रहा है कि लोगों से सलीके से पेश आएं। अब किसी प्रकरण में खाकी पहले रौब झाड़ेगी और फिर क्षमा याचना करते हुए प्रताडि़त को समझाएगी कि यह आपके हित में है। खाकी की भाषा को लेकर कई शोध हो चुके हैं। तमाम शोध निष्कर्षों का सार यही रहा कि खाकी के मुंह से नम्रता बरसेगी तो फिर बदमाश डरेंगे कैसे? वैसे भी खाकी के पास जुबान ही एकमात्र कारगर हथियार है, जिससे खाकी का रुतबा बचा हुआ है। यही हथियार भौंथरा कर दिया जाएगा तो फिर खाकी की कौन सुनेगा। खैर, जब खाकी को ही अपने रुतबे की परवाह नहीं है तो फिर हम पराए दुख क्यों दुबले हों? मुद्दे की बात करते हैं। जरा सोचिए, जब खाकी की चाल-चलन और बोली बदल जाएगी, तब कैसा माहौल होगा। जब कोई लूट की बड़ी वारदात होगी, तब हर बार की तरह लूटेरों का पीछा करने की बजाय जगह-जगह नाकेबंदी में अपनी मुस्तैदी दिखाकर आने-जाने वालों की जेब का बोझ हल्का करके सिपाही मुस्कुराते हुए कहते मिलेंगे कि सॉरी, यह आपके हित में हैं। सिपाही यह भी समझाते हुए मिल जाएंगे कि देखिए चालान कटवाएंगे तो पूरे दौ सौ रुपए लगेंगे, हम आपकी सेवा कुछ कम में ही कर देंगे। लोग भी खुश होंगे कि चलो एक सौ रुपए बचा लिए और सिपाही भी खुश कि चलो दिन बेकार नहीं गया। किसी चोर से चोरी की अन्य वारदातें भी कबूल करवानी हो तो हवालात में उसे सलीके से समझाया जाएगा कि यह तेरे भी हित में है और हमारे भी, क्योंकि तेरा इससे रुतबा बढ़ेगा और हमारी इससे नौकरी बची रहेगी। फर्जी मुठभेड़ में भी किसी के प्राण लेने से पहले उससे क्षमा याचना की जाएगी कि सॉरी, तेरे को ऊपर भेजना हमारे ऊपर वालों की मर्जी है। आंदोनकारियों के तंबू उखाड़ते हुए सिपाही भी अनुनय-विनय करेंगे कि आपके तंबू नहीं उखाड़े तो सरकार हमारे तंबू उखाड़ देगी। वकीलों का उग्र प्रदर्शन खाकी रोकने के बजाय लोगों से क्षमा याचना करते हुए मिलेगी कि सॉरी, हमारे बॉस का हित इसी में है कि आपको परेशान होने दिया जाए।
न्यूज टुडे, जयपुर में 29 जुलाई, 2013 को प्रकाशित व्यंग
रंग लाएगा माफीनामा
- डॉ. हनुमान गालवा
खाकी अपनी छवि सुधारने को लेकर चिंतित है। अब खाकी को सिखाया-समझाया जा रहा है कि लोगों से सलीके से पेश आएं। अब किसी प्रकरण में खाकी पहले रौब झाड़ेगी और फिर क्षमा याचना करते हुए प्रताडि़त को समझाएगी कि यह आपके हित में है। खाकी की भाषा को लेकर कई शोध हो चुके हैं। तमाम शोध निष्कर्षों का सार यही रहा कि खाकी के मुंह से नम्रता बरसेगी तो फिर बदमाश डरेंगे कैसे? वैसे भी खाकी के पास जुबान ही एकमात्र कारगर हथियार है, जिससे खाकी का रुतबा बचा हुआ है। यही हथियार भौंथरा कर दिया जाएगा तो फिर खाकी की कौन सुनेगा। खैर, जब खाकी को ही अपने रुतबे की परवाह नहीं है तो फिर हम पराए दुख क्यों दुबले हों? मुद्दे की बात करते हैं। जरा सोचिए, जब खाकी की चाल-चलन और बोली बदल जाएगी, तब कैसा माहौल होगा। जब कोई लूट की बड़ी वारदात होगी, तब हर बार की तरह लूटेरों का पीछा करने की बजाय जगह-जगह नाकेबंदी में अपनी मुस्तैदी दिखाकर आने-जाने वालों की जेब का बोझ हल्का करके सिपाही मुस्कुराते हुए कहते मिलेंगे कि सॉरी, यह आपके हित में हैं। सिपाही यह भी समझाते हुए मिल जाएंगे कि देखिए चालान कटवाएंगे तो पूरे दौ सौ रुपए लगेंगे, हम आपकी सेवा कुछ कम में ही कर देंगे। लोग भी खुश होंगे कि चलो एक सौ रुपए बचा लिए और सिपाही भी खुश कि चलो दिन बेकार नहीं गया। किसी चोर से चोरी की अन्य वारदातें भी कबूल करवानी हो तो हवालात में उसे सलीके से समझाया जाएगा कि यह तेरे भी हित में है और हमारे भी, क्योंकि तेरा इससे रुतबा बढ़ेगा और हमारी इससे नौकरी बची रहेगी। फर्जी मुठभेड़ में भी किसी के प्राण लेने से पहले उससे क्षमा याचना की जाएगी कि सॉरी, तेरे को ऊपर भेजना हमारे ऊपर वालों की मर्जी है। आंदोनकारियों के तंबू उखाड़ते हुए सिपाही भी अनुनय-विनय करेंगे कि आपके तंबू नहीं उखाड़े तो सरकार हमारे तंबू उखाड़ देगी। वकीलों का उग्र प्रदर्शन खाकी रोकने के बजाय लोगों से क्षमा याचना करते हुए मिलेगी कि सॉरी, हमारे बॉस का हित इसी में है कि आपको परेशान होने दिया जाए।
न्यूज टुडे, जयपुर में 29 जुलाई, 2013 को प्रकाशित व्यंग