Wednesday, 30 July 2014

सीता के अच्छे दिन कब आएंगे - डॉ. हनुमान गालवा


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सीता के अच्छे दिन कब आएंगे
- डॉ. हनुमान गालवा

यह अजीब बात है कि सीता के न तो रामराज्य में अच्छे दिन रहे और न ही अच्छे दिनों की सरकार में अच्छे दिन आ पा रहे हैं। अपहरण के बाद सीता के अच्छे दिन लाने के लिए युद्ध हुआ। युद्ध में सीता का अपहरण करने वाले रावण का अंत हुआ, तब उम्मीद जगी कि सीता के अच्छे दिन आने वाले हैं। उस समय सीता के अच्छे दिन लंका विजय के बाद आ गए, लेकिन धोबी को उनके अच्छे दिन रास नहीं आए। धोबी से रामराज्य का प्रमाण पत्र लेने के लिए सीता के अच्छे दिनों को कुर्बान कर दिया गया।
अब चुनाव से अच्छे दिनों की सरकार निकली, तो फिर उम्मीद जगी कि सभी के अच्छे दिन आएंगे तो सीता यानी हर बाला भी अच्छे दिनों से वंचित नहीं रहेगी। रामनाम जपते-जपते सत्ता का सत्तू खाते-खाते डकार लेने लगे कि रामराज्य में ही सीता के अच्छे दिन नहीं रहे, तो हम उनके अच्छे दिन कैसे ला सकते हैं। राम और कृष्ण की जन्मभूमि पर शासन करने वाले यदुवंशी शासक भी हाथ खड़े करने लगे हैं कि भगवान भी 'दुष्कर्मलीलाÓ नहीं रोक सकते हैं। उस जमाने में तो एक रावण था, लेकिन अब तो हर गली-कूचे में रावण घात लगाए बैठा है।  घर, बस, ट्रेन, स्कूल, कॉलेज या दफ्तर में रावण कब-किसके डील आ जाए, किसी को पता नहीं चलता। उस रावण के तो केवल दस सिर थे, लेकिन अब रावण चाहे जिसके सिर में जब चाहे प्रविष्ट हो सकता है। चाहे जिसके सिर में प्रकट होने की विशिष्टता का लिंक चुनावी राजनीति से सीधे जुड़ जाने से रावण का मुकाबला करते-करते राजनेताओं के सिर में भी रावण का वायरस घुस जाता है। मायावी रावण का हाईटैक वर्जन उस रावण से कई गुना ज्यादा खतरनाक और मायावी है। अच्छे दिनों की सरकार में बैठे लोग इस उधेड़बुन में है कि लोगों के अच्छे दिन लाएं या फिर खुद के अच्छे दिन बचाएं। गुणीजन कह रहे हैं कि धोबी को रामराज्य का अहसास करने के लिए प्रभु भी सीता के अच्छे दिन कुर्बान करने से नहीं हिचके तो राम नाम के सहारे अच्छे दिनों तक पहुंचने वाले अपने अच्छे दिनों के लिए दूसरों के अच्छे दिनों को कुर्बान क्यों नहीं करें? सीता रामराज्य में भी ठगा हुआ महसूस कर रही थी और लोकशाही में भी ठगा हुआ महससू कर रही है कि उसके अच्छे दिनों से किसी को क्या पीड़ा? अब देखना यह है कि अच्छे दिनों की सरकार रामराज्य को किसके अच्छे दिनों की कुर्बानी से प्रमाणित करती है।
डेली न्यूज में 29 जुलाई 2014 को प्रकाशित व्यंग्य

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