किस करवट बैठेगा ऊंट
डॉ. हनुमान गालवा
सरकारीकरण के बाद ऊंट समझ नहीं पा रहा है कि उसके अच्छे दिन आने वाले हैं या फिर उसके जैसे-तैसे दिनों की भी विदाई का यह सरकारी घोषणा पत्र है। सरकारीकरण के बाद ऊंट अब किस करवट बैठेगा? करवट को लेकर कयास अपनी जगह है, लेकिन ऊंट की सरकारीकरण के बाद चिंता बढ़ गई है कि यह करवट बचेगी भी या नहीं? उसकी यह चिंता निराधार इसलिए भी नहीं है, क्योंकि गोडावण राज्यपक्षी घोषित होने के बाद दहाई में सिमट चुका है। राज्यपशु चिंकारा चौकड़ी भर रहा है, लेकिन राज्य पुष्प रोहिड़े का फूल दूरबीन से ढूंढऩे पर भी भाग्यशाली को ही दिख पाता है। राज्य पेड़ खेजड़ी अपने गौरवशाली अतीत को याद करके रो रही है तो पीने के पानी की सरकारी पाइप लाइन से वीरान हुआ पनघट विलाप करने को विवश है। सरकारीकरण के चलते शहर भी दैत्य बन गए और गांवों को गटकते जा रहे हैं। चिंता का एक कारण यह भी है कि क्या ऊंट को अब सरकार बदलने के साथ बदलनी पड़ेगी या फिर उसे अपने हिसाब से करवट बदलने की आजादी बरकरार रहेगी?
करवट तो केवल गठबंधन सरकार में बदली जा सकती है। प्रचंड बहुमत की सरकार में तो करवट बदलने की आहट मात्र से अपनों को भी अपने पलक झपकते ही खंडहर में तब्दील कर देते हैं, धरोहर घोषित कर देते हैं। ऐसे में सरकार बदलने के साथ ऊंट भी अपनी करवट बदलने लगेगा तो फिर वह ऊंट कैसे रह पाएगा? उसका 'ऊंटपनाÓ ही जाता रहेगा तो फिर तो ऊंट और सत्ता के रंग में रंग जाने वाले नौकरशाह में फर्क ही क्या रह जाएगा? जब ऊंट की करवट का सरकारीकरण हो जाएगा तो फिर कोई भी बता सकता है कि ऊंट किस करवट बैठेगा या किस करवट बैठने वाला है? इससे एक फायदा जरूर होगा कि ऊंट की करवट के रुख को देखकर यह अंदाज आसानी से लगाया जा सकेगा कि चुनाव में सरकार बचेगी या वीरगति को प्राप्त होगी? एग्जिटपोल में भी ऊंट की करवट को शामिल करके उसे विश्वसनीय बनाया जा सकता है कि ऊंट करवट बदल रहा है यानी सरकार के पक्ष में जनादेश नहीं है...ऊंट के करवट बदलने का मन नहीं बनाने का मलतब है कि सरकार की सुरक्षित वापसी तय है। ऊंट की करवट के विशेषज्ञों का पैनल भी तैयार किया जा सकता है, जो टीवी चैनलों पर लाइव बहस में करवट की व्याख्या कर अपनी निष्ठा को करवट से पुष्ट कर सके।
डॉ. हनुमान गालवा
सरकारीकरण के बाद ऊंट समझ नहीं पा रहा है कि उसके अच्छे दिन आने वाले हैं या फिर उसके जैसे-तैसे दिनों की भी विदाई का यह सरकारी घोषणा पत्र है। सरकारीकरण के बाद ऊंट अब किस करवट बैठेगा? करवट को लेकर कयास अपनी जगह है, लेकिन ऊंट की सरकारीकरण के बाद चिंता बढ़ गई है कि यह करवट बचेगी भी या नहीं? उसकी यह चिंता निराधार इसलिए भी नहीं है, क्योंकि गोडावण राज्यपक्षी घोषित होने के बाद दहाई में सिमट चुका है। राज्यपशु चिंकारा चौकड़ी भर रहा है, लेकिन राज्य पुष्प रोहिड़े का फूल दूरबीन से ढूंढऩे पर भी भाग्यशाली को ही दिख पाता है। राज्य पेड़ खेजड़ी अपने गौरवशाली अतीत को याद करके रो रही है तो पीने के पानी की सरकारी पाइप लाइन से वीरान हुआ पनघट विलाप करने को विवश है। सरकारीकरण के चलते शहर भी दैत्य बन गए और गांवों को गटकते जा रहे हैं। चिंता का एक कारण यह भी है कि क्या ऊंट को अब सरकार बदलने के साथ बदलनी पड़ेगी या फिर उसे अपने हिसाब से करवट बदलने की आजादी बरकरार रहेगी?
करवट तो केवल गठबंधन सरकार में बदली जा सकती है। प्रचंड बहुमत की सरकार में तो करवट बदलने की आहट मात्र से अपनों को भी अपने पलक झपकते ही खंडहर में तब्दील कर देते हैं, धरोहर घोषित कर देते हैं। ऐसे में सरकार बदलने के साथ ऊंट भी अपनी करवट बदलने लगेगा तो फिर वह ऊंट कैसे रह पाएगा? उसका 'ऊंटपनाÓ ही जाता रहेगा तो फिर तो ऊंट और सत्ता के रंग में रंग जाने वाले नौकरशाह में फर्क ही क्या रह जाएगा? जब ऊंट की करवट का सरकारीकरण हो जाएगा तो फिर कोई भी बता सकता है कि ऊंट किस करवट बैठेगा या किस करवट बैठने वाला है? इससे एक फायदा जरूर होगा कि ऊंट की करवट के रुख को देखकर यह अंदाज आसानी से लगाया जा सकेगा कि चुनाव में सरकार बचेगी या वीरगति को प्राप्त होगी? एग्जिटपोल में भी ऊंट की करवट को शामिल करके उसे विश्वसनीय बनाया जा सकता है कि ऊंट करवट बदल रहा है यानी सरकार के पक्ष में जनादेश नहीं है...ऊंट के करवट बदलने का मन नहीं बनाने का मलतब है कि सरकार की सुरक्षित वापसी तय है। ऊंट की करवट के विशेषज्ञों का पैनल भी तैयार किया जा सकता है, जो टीवी चैनलों पर लाइव बहस में करवट की व्याख्या कर अपनी निष्ठा को करवट से पुष्ट कर सके।
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