न्यूज टुडे, जयपुर में 15 अप्रेल, 2014 को प्रकाशित व्यंग्य- राह दिखाता नया मॉडल
http://epaper.newstodaypost.com/257926/Newstoday-Jaipur/15-04-2014#page/5/2
राह दिखाता नया मॉडल
- डॉ. हनुमान गालवा
चुनावी मंथन में प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार के विवाह का खाना भर
गया। अब वे कुंआरे नहीं रहे। कुंआरे तो वे पहले भी नहीं थे, लेकिन एक
भ्रम बना हुआ था कि उनको अविवाहित माना जाए या विवाहित? वैवाहिक स्थिति
का कॉलम खाली छोड़ते रहने से यह भ्रम गहराता जा रहा था। इस गहराते भ्रम
के बीच उनके कुंआरेपन का कोहरा छंटने के साथ ही एक पतिव्रत्ता के सिंदूर
को सम्मान मिल गया। इस सम्मान के सांस्कृतिक विमर्श पर चिंतन-मनन किया जा
सकता है। गुजरात के विकास मॉडल की तर्ज पर इसे भी एक विवाह मॉडल के रूप
में आगे बढ़ाया और भुनाया जा सकता है। पार्टी चाहे तो इस पर अपना
दृष्टिकोण पत्र पर भी जारी कर सकती है या केवल घोषणा से भी काम चलाया जा
सकता है। खैर, उनकी पार्टी इसे भुनाए या नहीं, लेकिन घोटालों के सरदार की
पार्टी के कुंआरे युवराज ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया। खबरिया चैनलों
को चर्चा के लिए मसाला मिल गया, जिससे कई फ्लेवर में चटनी तैयार करके
टीआरपी का तड़का लगाया जा सकता है। इसे सुखद आश्चर्य माना जा सकता है कि
'गे मैरिजÓ की पैरवी के इस दौर विवाह की चर्चा राष्ट्रव्यापी बहस का रूप
लेती जा रही है। इसके विविध आयामों पर चर्चा हो रही है। इस बहस को खबरिया
चैनल एक सार्थक दिशा दे सकते हैं। मसलन, इस पर रायशुमारी भी करवाई जा
सकती है कि अब पति स्वरूप स्वीकारने के बाद राजनीति की लीला को विराम
देकर पत्नी सेवा करनी चाहिए या फिर इस स्वीकारोक्ति को ही पत्नी की
संतुष्टि मानते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर टॉवल बिछाने के बाद ही
अश्वमेज्ञ यज्ञ की पूर्णाहुति मानी जानी चाहिए। राष्ट्रपति पद को सुशोभित
करने वाली पहली महिला ने अपने नाम के साथ पति का नाम जोड़कर पति का
सम्मान बढ़ाया। उससे पहले राजस्थान की महामहिम भी रहीं, लेकिन उनके नाम
में पतिनाम का कहीं कोई प्रभाव नहीं दिखा। खैर, पतिदेवता की प्राण
प्रतिष्ठा हो सकती है तो पत्नी को सम्मान देकर समानता की नई मिसाल पेश
क्यों नहीं की जानी चाहिए? लिहाजा इस दिशा में भी सोचा जा सकता है कि
प्रधानमंत्री बनने पर अपने नाम के साथ पत्नी का नाम भी जोड़कर भारतीय
संस्कृति का नया अध्याय क्यों नहीं लिखा जा सकता है? वैसे भी घर छोड़कर
संन्यास लेने पर नया नाम देने की परम्परा रही है तो संन्यास से फिर
गृहस्थी बनने पर भी नया नाम क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? नया नाम हो सकता
है- जसोदाबेनपति नरेन्द्र मोदी। इसे सुविधा के हिसाब से लघु भी किया जा
सकता है। मसलन, अंग्रेजी में लिखना हो तो जे.बी.पी.एन. मोदी लिखा जा सकता
है। और इसे संघदृष्टि से भी लिखा जा सकता है- ज.बे.प.न. मोदी।
http://epaper.newstodaypost.com/257926/Newstoday-Jaipur/15-04-2014#page/5/2
राह दिखाता नया मॉडल
- डॉ. हनुमान गालवा
चुनावी मंथन में प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार के विवाह का खाना भर
गया। अब वे कुंआरे नहीं रहे। कुंआरे तो वे पहले भी नहीं थे, लेकिन एक
भ्रम बना हुआ था कि उनको अविवाहित माना जाए या विवाहित? वैवाहिक स्थिति
का कॉलम खाली छोड़ते रहने से यह भ्रम गहराता जा रहा था। इस गहराते भ्रम
के बीच उनके कुंआरेपन का कोहरा छंटने के साथ ही एक पतिव्रत्ता के सिंदूर
को सम्मान मिल गया। इस सम्मान के सांस्कृतिक विमर्श पर चिंतन-मनन किया जा
सकता है। गुजरात के विकास मॉडल की तर्ज पर इसे भी एक विवाह मॉडल के रूप
में आगे बढ़ाया और भुनाया जा सकता है। पार्टी चाहे तो इस पर अपना
दृष्टिकोण पत्र पर भी जारी कर सकती है या केवल घोषणा से भी काम चलाया जा
सकता है। खैर, उनकी पार्टी इसे भुनाए या नहीं, लेकिन घोटालों के सरदार की
पार्टी के कुंआरे युवराज ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया। खबरिया चैनलों
को चर्चा के लिए मसाला मिल गया, जिससे कई फ्लेवर में चटनी तैयार करके
टीआरपी का तड़का लगाया जा सकता है। इसे सुखद आश्चर्य माना जा सकता है कि
'गे मैरिजÓ की पैरवी के इस दौर विवाह की चर्चा राष्ट्रव्यापी बहस का रूप
लेती जा रही है। इसके विविध आयामों पर चर्चा हो रही है। इस बहस को खबरिया
चैनल एक सार्थक दिशा दे सकते हैं। मसलन, इस पर रायशुमारी भी करवाई जा
सकती है कि अब पति स्वरूप स्वीकारने के बाद राजनीति की लीला को विराम
देकर पत्नी सेवा करनी चाहिए या फिर इस स्वीकारोक्ति को ही पत्नी की
संतुष्टि मानते हुए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर टॉवल बिछाने के बाद ही
अश्वमेज्ञ यज्ञ की पूर्णाहुति मानी जानी चाहिए। राष्ट्रपति पद को सुशोभित
करने वाली पहली महिला ने अपने नाम के साथ पति का नाम जोड़कर पति का
सम्मान बढ़ाया। उससे पहले राजस्थान की महामहिम भी रहीं, लेकिन उनके नाम
में पतिनाम का कहीं कोई प्रभाव नहीं दिखा। खैर, पतिदेवता की प्राण
प्रतिष्ठा हो सकती है तो पत्नी को सम्मान देकर समानता की नई मिसाल पेश
क्यों नहीं की जानी चाहिए? लिहाजा इस दिशा में भी सोचा जा सकता है कि
प्रधानमंत्री बनने पर अपने नाम के साथ पत्नी का नाम भी जोड़कर भारतीय
संस्कृति का नया अध्याय क्यों नहीं लिखा जा सकता है? वैसे भी घर छोड़कर
संन्यास लेने पर नया नाम देने की परम्परा रही है तो संन्यास से फिर
गृहस्थी बनने पर भी नया नाम क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? नया नाम हो सकता
है- जसोदाबेनपति नरेन्द्र मोदी। इसे सुविधा के हिसाब से लघु भी किया जा
सकता है। मसलन, अंग्रेजी में लिखना हो तो जे.बी.पी.एन. मोदी लिखा जा सकता
है। और इसे संघदृष्टि से भी लिखा जा सकता है- ज.बे.प.न. मोदी।
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