Sunday, 20 April 2014

नाक पर मुक्का और अहिंसा - डॉ. हनुमान गालवा

 http://t.co/1QSOj5t5Te
नाक पर मुक्का और अहिंसा
 - डॉ. हनुमान गालवा
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कह गए थे कि कोई एक थप्पड़ मारे तो उसके सामने
दूसरा गाल कर दो। उनकी बात ठीक है, मगर कोई नाक पर मुक्का मारे तो क्या
करें? अहिंसा की ढाल तो वही है, लेकिन हिंसा का प्रकार बदल गया। हिंसा के
आकार-प्रकार के अनुरूप अहिंसा की ढाल में वैल्यू एडीशन की आवश्यकता है।
कोई एक कान खींचे तो उसके सामने दूसरा कान किया जा सकता है। कोई एक आंख
फोड़े तो उसकी आत्मा की शांति के लिए उसके सामने दूसरी आंख की जा सकती
है। कोई एक टांग तोड़े तो उसे कहा जा सकता है कि चल दूसरी भी तोड़ दे। कम
से कम चलने-फिरने के झंझट से तो मुक्ति मिलेगी। कोई एक हाथ मरोड़े तो
उसके सामने दूसरा हाथ किया जा सकता है। बात को जनसभा में नेताओं पर फेंके
जा रहे जूते के संदर्भ में कही जाए तो जूता फेंकने वाले से कहा जा सकता
है कि दूसरा भी फेंक दे। कम से कम जूते की जोड़ी तो सलामत रहेगी। बात कान
खींचने, बांह मरोडऩे, आंख फोडऩे या टांग तोडऩे या जूता फेंकने तक सीमित
होती तो चिंता की कोई बात नहीं। नाक पर मुक्का चलने लगा तब समस्या महंगाई
की तेरह बेकाबू हो गई है। इस समस्या के निदान के लिए करने को अनशन भी
किया जा सकता है और चिंतन-मनन के लिए संगोष्ठी भी आयोजित की जा सकती है।
नाक दो होते तो एक नाक पर मुक्का लगते ही दूसरा नाक आगे करके हिंसा के
प्रहार को अहिंसा की ढाल से थामा जा सकता था, लेकिन आखिर नाक तो एक ही है
ना! अब या तो दूसरी कृत्रिम नाक उगाई जाए या फिर नाक के क्षेत्र को
अहिंसा की परिधि से बाहर रखा जाए। निदान का कोई उपाय नहीं सूझे तो
गांधीजी के बंदरों से मदद ली जा सकती है। गांधीजी के तीन बंदरों में से
एक अपनी आंख बचा रहा है, दूसरा अपने कान बचा रहा है और तीसरा अपना मुंह
बचा रहा है।...ताकि  सरकार की तरह अपनी सुविधा के अनुसार चाहे तब देख सके
और चाहे तब आंख मूंद सके।  उनके पास एक चौथे बंदर को भी प्रतिष्ठित किया
जा सकता है, जो नाक पर हाथ रखकर नाक की सलामती का संदेश दे सके। कान भी
जीतने  पर खोलकर विजय का सिंहनाद सुन सके और हारने पर कान बंद करके हारकर
भी जीत का आनंद अनूभूत कर सके। मुंह का बचा रहना भी इसलिए जरूरी है,ताकि
सत्ता मिलने पर जी भरकर खाया जा सके। नाक की हिफाजत भी उस पर हाथ रखकर की
जानी चाहिए, ताकि सूंघकर पता लगाया जा सके कि घोटाले का प्रसाद खुद खाए
या फिर जनता को भी कुछ मखाणे बांटे जाएं। हालांकि कहने वाले कह सकते हैं
कि नकटे का नाक तो कटने पर बढ़ता है तो फिर नेताओं की नाक की की सुरक्षा
की क्या जरूरत?
न्यूज टुडे जयपुर में 19 अप्रेल, 2014 को प्रकाशित व्यंग्य 
https://www.facebook.com/hanuman.galwa   
 

No comments:

Post a Comment