Wednesday, 11 September 2013

अंतरिक्ष पर अतिक्रमण - डॉ. हनुमान गालवा

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अंतरिक्ष पर अतिक्रमण
- डॉ. हनुमान गालवा
मंगल ग्रह पर कॉलोनी कट रही है। बुकिंग शुरू हो चुकी है। दुनियाभर से एक लाख से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। आवेदनों की लॉटरी से भाग्योदय की आस लगाए भारतीय भला पीछे क्यों रहेंगे। आठ हजार से ज्यादा भारतीय भी मंगल ग्रह पर बसने की दौड़ में शामिल हैं। चांद पर कॉलोनी कटी थी। तब भी धरती पर भूखंड नहीं खरीद पाने वाले कई महापुरुषों ने चांद के टुकड़े के तोहफे से धर्मपत्नी का दिल जीत लिया था। इनमें से कई महिलाएं रोज चांद को निहारती है। अपने पति के दिए उपहार को देखती है। कयास लगाती है कि उसका भूखंड कहां होगा? हमने भी अपने मित्र से परामर्श लिया कि अपन भी धरती पर भूखंड का श्रीखंड नहीं पा सके तो क्यों न मंगल पर मंगल का सोचा जाए। मित्र को सलाह जची। बोले बात ठीक है। रही बात रहने की तो यहां प्लॉट खरीदकर कौनसे रह लेंगे? यहां खरीदेंगे तो प्लॉट रोज दिखेगा। बसने की सोचेंगे तो भूमाफिया से पंगा लेना पड़ेगा। मुकदमाबाजी होगी तो रही-सही पंूजी भी ठिकाने लग जाएगी। मंगल पर प्लॉट के लिए बुकिंग करवा लेते हैं। न प्लॉट दिखेगा और न ही मकान बनवाने की नौबत आएगी। प्लॉट देखने जाना चाहेंगे भी तब भी केवल कल्पना की उड़ान ही भरनी पड़ेगी। भूखंड का एहसास ही सुकून देता रहेगा। चांद तो फिर भी पहचान में आ जाता है। चांद रोज दिखता है तो वहां खरीदा गया प्लॉट देखे बिना रहा नहीं जाता है। देखेंगे तो याद बसने की इच्छा भी बढ़ेगी। खैर, मंगल पर मंगल की तैयार चल रही है तो हम भी पीछे क्यों रहे। पहले प्लॉट खरीदा जाए, फिर बस न सकें तो प्रोपर्टी डीलर का काम भी चल निकलेगा। कोई यह भी नहीं कह सकता कि बिना जमीन के ही प्रोपर्टी डीलर बन बैठे। रही बात मौक पर कब्जा देने की तो कह सकते हैं कि मंगल पर जाओ और देख आओ। कोई अपने प्लॉट पर मकान बनवाने चाहे तो हम बिना ईंट-पत्थर के भी मंगल पर मकान बनवाकर दे सकते हैं। कल्पना के कोई पैसे थोड़े ही लगते हैं, लेकिन कल्पना से पैसा कमाया जा सकता है।
न्यूज टुडे, जयपुर में 11 सिंतबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य

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