Wednesday, 4 September 2013

फाइल की कलाबाजी - डॉ. हनुमान गालवा

http://newstoday.epapr.in/155695/Newstoday-Jaipur/04-09-2013#page/5/1

फाइल की कलाबाजी
- डॉ. हनुमान गालवा
कोयला घोटाले की फाइल खो गई। इस पर बवाल ठीक नहीं है। खुद प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि इसमें वे क्या कर सकते हैं? दिनभर देश में फाइल इधर-उधर होती रहती है। इसमें कुछ फाइल कहीं अटक जाए या भटक जाए तो भला कोई क्या कर सकता है? इसमें सरकार या चौकसी एजेंसी की क्षमता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। आप और हमें एक छोटे से कमरे से अपना चश्मा ढूंढऩे में भी पसीना आ जाता है, लेकिन सीबीआई ने हंसते-हंसते भंवरी प्रकरण में नहर से अंगूठी ढूंढ़ लाने का करिश्मा कर दिखाया। ऐसे में सरकार के सामथ्र्य को लेकर भी कोई संशय नहीं होना चाहिए। सरकार बाबाओं को पकड़वाने के लिए घेराबंदी करती है, लेकिन आतंकवादियों का गिरफ्तारी के लिए स्वत: ही चले आने का इंतजार करती है। जो भाग सकता है उसे पकडऩे के लिए भागना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमानी इसी में है कि जो भाग नहीं सकता है, उसे पकड़ लो और जो पकड़ में नहीं आ सकता है, उसे पकड़ में आने का इंतजार करो। रही बात फाइल की, तो फाइल तो दूसरी बनाई जा सकती है। फाइल का क्लोन तैयार करने की कला में भी हम पारंगत हैं। जो फाइल दूसरी बनाई जा सकती है तो उसके लिए रोने-धोने की क्या जरूरत? हरवंश राय बच्चन की कविता को अपडेट करके मन को दिलासा दी जा सकती है कि एक फाइल थी। खो गई सो खो गई। खोई हुई फाइलों पर सरकार कब मातम मनाती है...। समझने वाली बात यह है कि फाइलों की गति से ही देश गतिमान है। फाइल चलती है, तो सरकार चलती है। फाइल खोती है, तो सरकार बचती है। खोई हुई फाइल या तो किसी घटक को डराने के लिए मिलती है या फिर किसी मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए मिलती है। दरसअल, फाइल खोती नहीं है, वह तो केवल अदृश्य होती है। जरूरत के अनुरूप फाइल का प्रकट होना, गायब करना और उधर-उधर होने की कलाबाजी से ही सरकार बनती है, चलती है और बचती है।
न्यूज टुडे जयपुर में 4 सितंबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य

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