Wednesday, 25 September 2013

सत्ता और रोटी - डॉ. हनुमान गालवा

सत्ता और रोटी
- डॉ. हनुमान गालवा

वामपंथी मानते हैं कि सत्ता बंदूक की नाली से निकलती है। हमारी यूपीए
सरकार ने इस अवधारणा को झुठला दिया। सरकार इस धारणा को पुष्ट करने में
जुटी है कि सत्ता पेट से निकलती है। गरीब के पेट में दो-चार रोटी डालो।
सब्सिडी की लाठी से उसे हिलाओ तो उससे मतों की बारिश होगी। इस बारिश से
राज की फसल उगाओ और घोटालों की उपज काटो। राज के लिए बंदूक उठाने की
जरूरत नहीं। गरीब के पेट से सत्ता और सरकार के पेट से घोटाले और
गड़बडिय़ां पैदा होती हैं। सत्ता का पेड़ उगाने की हमारी अहिंसक तकनीक
दुनिया को नई दिशा दे सकती है। मनरेगा के तहत गड्ढ़े खुदवाओ। खाद्य
सुरक्षा अधिनियम का खाद डालो। फिर उसमें घोषणा के बीज डालो। उस पर
सब्सिडी का पानी छिडक़ो। वादों के आकर्षण से अंकुर फूट आएंगे।
आरोप-प्रत्यारोप के औजार से उसकी निराई-गुड़ाई कर दीजिए। जाति-धर्म पोषित
पौधा पेड़ बनते देर नहीं लगेगी। पेड़ पर लगे फूल (वोट) झोली में समेट
लीजिए और पूरे पांच साल खराटे भरते रहिए। इस पेड़ पर लगा फल (सत्ता) को
घोटाले और गड़बडिय़ों के आचार से ही पचाया जा सकता है। जब घोटाले और
गड़बडिय़ों के गुब्बार से निजात दिलाने में आरक्षण का चूर्ण मददगार साबित
हो सकता है। हमारी सरकार को सत्ता का पेड़ उगाने और उस पर चढ़े रहने के
फामूर्ले का तुरंत पेटेंट करवा लेना चाहिए, ताकि हमारी अपनी इस थ्योरी को
कोई अपना नहीं बता सके। अंग्रेज तो फूट डालो और राज करो नीति से देश में
कई साल जमे रहे। अब हमारी सरकार बांटो और खाओ नीति से सत्ता में बने रहने
के जुगाड़ कीर्तिमान रच रही है। जिन देशों में सत्ता के लिए संघर्ष चल
रहा है, हम उनको इस फार्मूले से संघर्ष से मुक्ति दिला सकते हैं। जंग में
बर्बाद होने की मूर्खता कर रहा अमेरिका भी हमारी थ्योरी को समझकर समझदार
बन सकता है। दुनिया चाहे तो हमारी थ्योरी का परीक्षण भी करवा सकती है।
न्यूज टूडे, जयपुर में 25 सिंतबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य

http://newstoday.epapr.in/164316/Newstoday-Jaipur/25-09-2013#page/5/2

Wednesday, 11 September 2013

अंतरिक्ष पर अतिक्रमण - डॉ. हनुमान गालवा

http://newstoday.epapr.in/158539/Newstoday-Jaipur/11-09-2013#page/5/1 

अंतरिक्ष पर अतिक्रमण
- डॉ. हनुमान गालवा
मंगल ग्रह पर कॉलोनी कट रही है। बुकिंग शुरू हो चुकी है। दुनियाभर से एक लाख से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। आवेदनों की लॉटरी से भाग्योदय की आस लगाए भारतीय भला पीछे क्यों रहेंगे। आठ हजार से ज्यादा भारतीय भी मंगल ग्रह पर बसने की दौड़ में शामिल हैं। चांद पर कॉलोनी कटी थी। तब भी धरती पर भूखंड नहीं खरीद पाने वाले कई महापुरुषों ने चांद के टुकड़े के तोहफे से धर्मपत्नी का दिल जीत लिया था। इनमें से कई महिलाएं रोज चांद को निहारती है। अपने पति के दिए उपहार को देखती है। कयास लगाती है कि उसका भूखंड कहां होगा? हमने भी अपने मित्र से परामर्श लिया कि अपन भी धरती पर भूखंड का श्रीखंड नहीं पा सके तो क्यों न मंगल पर मंगल का सोचा जाए। मित्र को सलाह जची। बोले बात ठीक है। रही बात रहने की तो यहां प्लॉट खरीदकर कौनसे रह लेंगे? यहां खरीदेंगे तो प्लॉट रोज दिखेगा। बसने की सोचेंगे तो भूमाफिया से पंगा लेना पड़ेगा। मुकदमाबाजी होगी तो रही-सही पंूजी भी ठिकाने लग जाएगी। मंगल पर प्लॉट के लिए बुकिंग करवा लेते हैं। न प्लॉट दिखेगा और न ही मकान बनवाने की नौबत आएगी। प्लॉट देखने जाना चाहेंगे भी तब भी केवल कल्पना की उड़ान ही भरनी पड़ेगी। भूखंड का एहसास ही सुकून देता रहेगा। चांद तो फिर भी पहचान में आ जाता है। चांद रोज दिखता है तो वहां खरीदा गया प्लॉट देखे बिना रहा नहीं जाता है। देखेंगे तो याद बसने की इच्छा भी बढ़ेगी। खैर, मंगल पर मंगल की तैयार चल रही है तो हम भी पीछे क्यों रहे। पहले प्लॉट खरीदा जाए, फिर बस न सकें तो प्रोपर्टी डीलर का काम भी चल निकलेगा। कोई यह भी नहीं कह सकता कि बिना जमीन के ही प्रोपर्टी डीलर बन बैठे। रही बात मौक पर कब्जा देने की तो कह सकते हैं कि मंगल पर जाओ और देख आओ। कोई अपने प्लॉट पर मकान बनवाने चाहे तो हम बिना ईंट-पत्थर के भी मंगल पर मकान बनवाकर दे सकते हैं। कल्पना के कोई पैसे थोड़े ही लगते हैं, लेकिन कल्पना से पैसा कमाया जा सकता है।
न्यूज टुडे, जयपुर में 11 सिंतबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य

Wednesday, 4 September 2013

फाइल की कलाबाजी - डॉ. हनुमान गालवा

http://newstoday.epapr.in/155695/Newstoday-Jaipur/04-09-2013#page/5/1

फाइल की कलाबाजी
- डॉ. हनुमान गालवा
कोयला घोटाले की फाइल खो गई। इस पर बवाल ठीक नहीं है। खुद प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि इसमें वे क्या कर सकते हैं? दिनभर देश में फाइल इधर-उधर होती रहती है। इसमें कुछ फाइल कहीं अटक जाए या भटक जाए तो भला कोई क्या कर सकता है? इसमें सरकार या चौकसी एजेंसी की क्षमता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। आप और हमें एक छोटे से कमरे से अपना चश्मा ढूंढऩे में भी पसीना आ जाता है, लेकिन सीबीआई ने हंसते-हंसते भंवरी प्रकरण में नहर से अंगूठी ढूंढ़ लाने का करिश्मा कर दिखाया। ऐसे में सरकार के सामथ्र्य को लेकर भी कोई संशय नहीं होना चाहिए। सरकार बाबाओं को पकड़वाने के लिए घेराबंदी करती है, लेकिन आतंकवादियों का गिरफ्तारी के लिए स्वत: ही चले आने का इंतजार करती है। जो भाग सकता है उसे पकडऩे के लिए भागना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमानी इसी में है कि जो भाग नहीं सकता है, उसे पकड़ लो और जो पकड़ में नहीं आ सकता है, उसे पकड़ में आने का इंतजार करो। रही बात फाइल की, तो फाइल तो दूसरी बनाई जा सकती है। फाइल का क्लोन तैयार करने की कला में भी हम पारंगत हैं। जो फाइल दूसरी बनाई जा सकती है तो उसके लिए रोने-धोने की क्या जरूरत? हरवंश राय बच्चन की कविता को अपडेट करके मन को दिलासा दी जा सकती है कि एक फाइल थी। खो गई सो खो गई। खोई हुई फाइलों पर सरकार कब मातम मनाती है...। समझने वाली बात यह है कि फाइलों की गति से ही देश गतिमान है। फाइल चलती है, तो सरकार चलती है। फाइल खोती है, तो सरकार बचती है। खोई हुई फाइल या तो किसी घटक को डराने के लिए मिलती है या फिर किसी मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए मिलती है। दरसअल, फाइल खोती नहीं है, वह तो केवल अदृश्य होती है। जरूरत के अनुरूप फाइल का प्रकट होना, गायब करना और उधर-उधर होने की कलाबाजी से ही सरकार बनती है, चलती है और बचती है।
न्यूज टुडे जयपुर में 4 सितंबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य