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बाबा का सपना और सरकार
- डॉ. हनुमान गालवा
किसी सपने पर कार्रवाई करने वाली हमारी सरकार दुनिया में पहली सरकार है। एक बाबा ने सपने में सोने का खजाना देखा। सरकार तुरंत उसकी खोज में खुदाई करने लगी। मीडिया खुदाई का लाइव कवरेज पूरे देश को दिखा रहा है। देखने को गांधी बाबा ने भी देश में ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। ग्राम स्वराज्य को खोजने का कोई सरकारी प्रयास नहीं हुआ। अब तो सरकार बाबा-बाबा में भी भेद करने लगी है। दिल्ली में आकर विदेशी बैंक में छिपे हमारे खजाने का सपना दिखाने वाले बाबा का लाठी से सत्कार करती है। एक बाबा ने सपने में देखा कि एक बाला को प्रेतात्मा सता रही है। बाबा अपने सपने के बारे में बता देते तो शायद कोई नागर, कांडा या मदेरणा भी कुछ मदद करते। बाबा तो आखिर बाबा ठहरे। उनको किसका भय। खुद ही भूत उतरने लगे। बाबा ने सरकार के दूतों पर भरोसा नहीं किया। अब पछताने से क्या होता है? सपने में सोने का खजाना देखने वाले बाबा ने सत्ता के दूतों पर भरोसा किया तो दूतों ने भी उनके सपने पर विश्वास किया। अब सरकार खजाने की खोज में खुदाई में लगी है। इस खुदाई में हम घोटालों के गम भूल चुके हैं। दंगों के जख्म भर गए हैं। भगदड़ का भूत हमें कहीं नहीं दिख रहा है। अब पूरा देश खजाने के सपने में जुटा है। जैसे सोना मिलेगा तो सभी संकटों का निवारण हो जाएगा। सरकार के संकट तो टल रहे हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे हमारे कष्ट भी कुछ तो कम होंगे। वैसे तो सपने में भी सोना मिलना या खोना अशुभ माना जाता है। चूंकि सपना सरकार ने तो देखा नहीं। इसलिए यह अशुभ होगा तो सपना देखने वाले बाबा के लिए होगा। सरकार के लिए तो शुभ ही शुभ है। मोह-माया छोड़ चुके बाबाओं को सपने में सोना दिख रहा है। जनता के सेवकों को बाबा के सपने का खजाना दिख रहा है। खजाना मिल गया तो चमत्कारिक बाबा की साधना का जादू चल निकलेगा। खजाना नहीं भी मिला तब भी भला नुकसान क्या? चर्चा की जुगाली से कुछ दिन तो सुकून मिलेगा। सपने में भी संतोष मिल रहा है तो सपने को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। हमारे देश को कभी सपेरों का देश कहा जाता था। अब हम उनको बता सकते हैं कि भारत सपेरों नहीं सपनों का देश है, जहां सभी को सपने देखने का अधिकार है।
न्यूज टुडे जयपुर में 21 अक्टूबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य
किसी सपने पर कार्रवाई करने वाली हमारी सरकार दुनिया में पहली सरकार है। एक बाबा ने सपने में सोने का खजाना देखा। सरकार तुरंत उसकी खोज में खुदाई करने लगी। मीडिया खुदाई का लाइव कवरेज पूरे देश को दिखा रहा है। देखने को गांधी बाबा ने भी देश में ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। ग्राम स्वराज्य को खोजने का कोई सरकारी प्रयास नहीं हुआ। अब तो सरकार बाबा-बाबा में भी भेद करने लगी है। दिल्ली में आकर विदेशी बैंक में छिपे हमारे खजाने का सपना दिखाने वाले बाबा का लाठी से सत्कार करती है। एक बाबा ने सपने में देखा कि एक बाला को प्रेतात्मा सता रही है। बाबा अपने सपने के बारे में बता देते तो शायद कोई नागर, कांडा या मदेरणा भी कुछ मदद करते। बाबा तो आखिर बाबा ठहरे। उनको किसका भय। खुद ही भूत उतरने लगे। बाबा ने सरकार के दूतों पर भरोसा नहीं किया। अब पछताने से क्या होता है? सपने में सोने का खजाना देखने वाले बाबा ने सत्ता के दूतों पर भरोसा किया तो दूतों ने भी उनके सपने पर विश्वास किया। अब सरकार खजाने की खोज में खुदाई में लगी है। इस खुदाई में हम घोटालों के गम भूल चुके हैं। दंगों के जख्म भर गए हैं। भगदड़ का भूत हमें कहीं नहीं दिख रहा है। अब पूरा देश खजाने के सपने में जुटा है। जैसे सोना मिलेगा तो सभी संकटों का निवारण हो जाएगा। सरकार के संकट तो टल रहे हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे हमारे कष्ट भी कुछ तो कम होंगे। वैसे तो सपने में भी सोना मिलना या खोना अशुभ माना जाता है। चूंकि सपना सरकार ने तो देखा नहीं। इसलिए यह अशुभ होगा तो सपना देखने वाले बाबा के लिए होगा। सरकार के लिए तो शुभ ही शुभ है। मोह-माया छोड़ चुके बाबाओं को सपने में सोना दिख रहा है। जनता के सेवकों को बाबा के सपने का खजाना दिख रहा है। खजाना मिल गया तो चमत्कारिक बाबा की साधना का जादू चल निकलेगा। खजाना नहीं भी मिला तब भी भला नुकसान क्या? चर्चा की जुगाली से कुछ दिन तो सुकून मिलेगा। सपने में भी संतोष मिल रहा है तो सपने को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। हमारे देश को कभी सपेरों का देश कहा जाता था। अब हम उनको बता सकते हैं कि भारत सपेरों नहीं सपनों का देश है, जहां सभी को सपने देखने का अधिकार है।
न्यूज टुडे जयपुर में 21 अक्टूबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य
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