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गरीब का स्पर्श
- डॉ. हनुमान गालवा
पारस का स्पर्श पाकर लोहा भी सोना बन जाता है। यह हम पीढिय़ों से सुनते आए हैं। इस पर बिना देखे ही यकीन करते आए हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम आदमी जिसे भी छूता है, वह महंगी हो जाती है यानी आम आदमी से दूर हो जाती है। अमेरिका तक इस धारणा को प्रमाणित कर चुका है। अमेरिका से बात चली कि भारतीयों की खुराक बढ़ जाने से दुनिया में महंगाई बढ़ी है। हमारे विशेषज्ञों ने इस अमेरिकी निष्कर्ष में अपनी राय जोड़ दी कि गांव वाले ज्यादा खाते हैं। विशेषज्ञों की इस राय से सरकार भी इनकार नहीं कर सकी। तुरंत अपनी पीठ थपथपा दी कि नरेगा से क्रय शक्ति बढ़ी है तो लोग खाएंगे ही। सरकार ने लोगों को जीमने का कानूनन अधिकार भी दे दिया, ताकि सरकार की तरह लोग भी खूब खा सकें। युवराज ने अपनी पार्टी के नारे को भी अपडेट कर दिया। बात दो रोटी से चार पर पहुंचते ही युवराज को डकार आ गई और कह दिया भरपेट रोटी खाओ और उनकी पार्टी को जिताओ। अब कहा जाने लगा है कि सब्जियों के भाव इसलिए बढ़े, क्योंकि गरीब दो-दो सब्जियां खाने लगे हैं। भला यह भी कोई बात हुई? जीने के अधिकार में रोजगार की तरह रोटी पाने और खाने के अधिकार में सब्जियां खाने का अधिकार भी निहित है। सरकार चाहे तो इस बारे में विधि विशेषज्ञों की राय ले सकती है या फिर कोई आयोग या समिति गठित कर यह सुनिश्चित कर सकती है। जरूरत पड़े तो कानून भी बनाया जा सकता है, क्योंकि आजकल हर समस्या के समाधान मेें कानून बनाकर ठंडे बस्ते में डालने का टोटका कारगर साबित हो रहा है। इस रोटी के अधिकार का रेसपोंस ठीक रहा, तो शायद सरकार अगले चुनाव के बाद नई सरकार रोटी के साथ सब्जी खाने का अधिकार भी दे दे। आम आदमी रोटी के हाथ लगता है, तो रोटी महंगी हो जाती है। सब्जी की ओर देखता है कि उसके भाव आसमान छूने लगते हैं। प्याज भी आखिर कब तक गरीब बना रहता? प्याज ने भी गरीबों से दूरी बढ़ाकर अपने आपको विशिष्ट बना लिया है। गाड़ी की सोचता है तो पेट्रोल-डीजल महंगा हो जाता है। सोना चाहता है तो 'सोनाÓ महंगा हो जाता है। बच्चों को स्कूल भेजने की सोचने से ही पढ़ाई महंगी हो जाती है। और तो और जिसे वह चुनकर भेजता है, वह भी जीतने के बाद आम आदमी से दूर हो जाता है। इसमें उसका कोई दोष नहीं है। यह तो आम आदमी के ईवीएम में उसके बटन पर ज्यादा स्पर्श के अभिशाप का नतीजा है। इस अभिशाप से दोषमुक्ति का कोई उपाय ढूंढ़ा जाना चाहिए। एक तो गाइडलाइन जारी की जा सकती है कि आम आदमी किसे स्पर्श करे और किसे नहीं। दूसरा, आम आदमी से शपथपत्र लिए जाएं कि वे गाइडलाइन की पालना करेंगे।
न्यूज टुडे जयपुर के 2/12/2013 के संस्करण में प्रकाशित व्यंग्य
very well said sir . Really we all need your thoughts
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