Monday, 28 October 2013

प्याज का करिश्मा - डॉ. हनुमान गालवा


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प्याज का करिश्मा
 - डॉ. हनुमान गालवा
हमारा देश वाकई करिश्माई है। रोज नए-नए करिश्मे और चमत्कार। समोसे में आलू है, लेकिन संसद से लालू गायब हो चुके हैं। घोटाले की गेंद से रशीद मसूद भाई भी क्लीन बॉल्ड हो गए हैं तो तय है कि अब राजनीति के पिच पर दागी नहीं खेल पाएंगे। यह भी किसी सपने से कम नहीं है कि सजा होते ही सत्ता का स्विच स्वत: ही ऑफ हो जाएगा। अब तो राजनीति दलों का टिकिट नेटवर्क भी दागियों के लाइन कनेक्ट हो जाने पर भी 'नोट रिचेबलÓ हो जाएगा। खैर, राजनीति में तो करिश्मे, चत्मकार होते रहते हैं। बाबा सोने के खजाने का चमत्कार दिखा रहे हैं। सरकार आम आदमी का जाप छोड़कर खजाना...खजाना जप रही है। जब देश में चहुंओर चमत्कार हो रहा है तो फिर किसान के खेत का प्याज भी खामोश क्यों बैठा रहे? आखिर प्याज ने अपनी उछल-कूद से कई बार सरकार बदलने और बनाने का करिश्मा कर दिखाया है, तो उसके चमत्कार को कौन नहीं नमस्कार करेगा? किसान के खेत का एक रुपए किलो का प्याज दिल्ली में जाकर एक सौ रुपए का हो गया। दिल्ली जाकर नेताओं के भाव बढ़ जाते हैं, तो फिर प्याज अपने नखरे क्यों नहीं दिखलाएगा? प्याज के करिश्मे को समझने के लिए अतीत की परतें उधेडऩी पड़ेंगी। मिस्टर क्लीन कह करते थे कि दिल्ली से एक रुपया भेजते हैं, जो गांव के गरीब तक पहुंचते-पहुंचते पंद्रह पैसे रह जाता है। एक रुपए के पंद्रह पैसे में सिमट जाने की गुत्थी को भी प्याज के करिश्मे से ही सुलझाया जा सकता है। किसान के हाथ से प्याज निकलता है, तब उसे कोई खास भाव नहीं देता है। मंडी में थोक एवं खुदरा विक्रेताओं के चमत्कारिक स्पर्श  से प्याज आम से खास हो जाता है। भंडार में रहते-रहते प्याज को चमत्कारिक बाबा की तरह अपनी शक्ति का अहसास होता है। कुछ दिन विश्राम के बाद जब प्याज ठेले पर विराजमान होकर गली-कूचे में भ्रमण करता है, तब उसे अपनी अहमियत का अंदाज हो जाता है। यहीं आकर सरकार को उसके छिलके भी डराने लगते हैं, लेकिन सत्ता में आने के सपने पाले प्रतिपक्ष को उसका तीखापन भी मीठेपन का अहसास देता है। प्याज सरकार के लिए बम है, तो सत्ताभिलाषी विपक्षी नेताओं के लिए सपने साकार करने वाला बाबा है। प्याज का सपना किसी को राजयोग दिखाता है, तो किसी को सत्तावियोग। यह प्याज का ही चमत्कार है कि एक ही सपने में संयोग और वियोग दोनों तरह की अनुभूति का अहसास हो जाता है। प्याज शनि की तरह कुंडली में बैठकर किसी को राजा भी बना सकता है और राजा को रंक भी बना सकता है।
न्यूज टुडे जयपुर  में 28 अक्टूबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य

Monday, 21 October 2013

बाबा का सपना और सरकार - डॉ. हनुमान गालवा


http://newstoday.epapr.in/c/1806608

बाबा का सपना और सरकार
- डॉ. हनुमान गालवा
किसी सपने पर कार्रवाई करने वाली हमारी सरकार दुनिया में पहली सरकार है। एक बाबा ने सपने में सोने का खजाना देखा। सरकार तुरंत उसकी खोज में खुदाई करने लगी। मीडिया खुदाई का लाइव कवरेज पूरे देश को दिखा रहा है। देखने को गांधी बाबा ने भी देश में ग्राम स्वराज्य का सपना देखा था। ग्राम स्वराज्य को खोजने का कोई सरकारी प्रयास नहीं हुआ। अब तो सरकार बाबा-बाबा में भी भेद करने लगी है। दिल्ली में आकर विदेशी बैंक में छिपे हमारे खजाने का सपना दिखाने वाले बाबा का लाठी से सत्कार करती है। एक बाबा ने सपने में देखा कि एक बाला को प्रेतात्मा सता रही है। बाबा अपने सपने के बारे में बता देते तो शायद कोई नागर, कांडा या मदेरणा भी कुछ मदद करते। बाबा तो आखिर बाबा ठहरे। उनको किसका भय। खुद ही भूत उतरने लगे। बाबा ने सरकार के दूतों पर भरोसा नहीं किया। अब पछताने से क्या होता है? सपने में सोने का खजाना देखने वाले बाबा ने सत्ता के दूतों पर भरोसा किया तो दूतों ने भी उनके सपने पर विश्वास किया। अब सरकार खजाने की खोज में खुदाई में लगी है। इस खुदाई में हम घोटालों के गम भूल चुके हैं। दंगों के जख्म भर गए हैं। भगदड़ का भूत हमें कहीं नहीं दिख रहा है। अब पूरा देश खजाने के सपने में जुटा है। जैसे सोना मिलेगा तो सभी संकटों का निवारण हो जाएगा। सरकार के संकट तो टल रहे हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इससे हमारे कष्ट भी कुछ तो कम होंगे। वैसे तो सपने में भी सोना मिलना या खोना अशुभ माना जाता है। चूंकि सपना सरकार ने तो देखा नहीं। इसलिए यह अशुभ होगा तो सपना देखने वाले बाबा के लिए होगा। सरकार के लिए तो शुभ ही शुभ है। मोह-माया छोड़ चुके बाबाओं को सपने में सोना दिख रहा है। जनता के सेवकों को बाबा के सपने का खजाना दिख रहा है। खजाना मिल गया तो चमत्कारिक बाबा की साधना का जादू चल निकलेगा। खजाना नहीं भी मिला तब भी भला नुकसान क्या? चर्चा की जुगाली से कुछ दिन तो सुकून मिलेगा। सपने में भी संतोष मिल रहा है तो सपने को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए। हमारे देश को कभी सपेरों का देश कहा जाता था। अब हम उनको बता सकते हैं कि भारत सपेरों नहीं सपनों का देश है, जहां सभी को सपने देखने का अधिकार है।
न्यूज टुडे जयपुर में 21 अक्टूबर, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य