http://newstoday.epapr.in/150202/Newstoday-Jaipur/21-08-2013#page/5/1
हम विश्वगुरु जो ठहरे
- डॉ. हनुमान गालवा
आतंकवादियों के बम गुरु को पकड़कर हमने भी साबित कर दिया कि हम भी आखिर विश्वगुरु रहे हैं। हमारी यह उपलब्धि अमेरिका को भी मात देने वाली है। अमेरिका को एक आतंकी सरगना को पकडऩे के लिए विशेष सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी। उस कार्रवाई का लाइव प्रसारण वहां के राष्ट्रपति ने देखा। हमारी कार्रवाई का वीडियो देखेंगे तो उनके समझ में आ जाएगा कि आतंकी को पकडऩे के लिए युद्ध करने की जरूरत नहीं है। यह कला सिर्फ हमें ही आती है। हमें पूरा यकीन था कि बम गुरु भारत ही आएगा। ओसामा बिन लादेन ने पाकिस्तान में शरण लेने की जो गलती की थी, उसे वह कतई नहीं दोहराएगा। फिर जब बुढ़ापा सुधारने के लिए भारत आने का उसका खुफिया संदेश पकड़ गया तो हमारा खुफिया तंत्र बेफिक्र हो गया था कि वह यहीं आएगा। उसने हमारे भरोसे को नहीं तोड़ा। उसने भारत भूमि पर प्रवेश किया तो इस उपलब्धि को लपकने के लिए स्पेशल पुलिस की स्पेशल टीम तैयार बैठी थी। उत्साह में हम गिरफ्तारी और किसी वीआईपी की अगवानी में फर्क ही भूल गए। फोटो ऐसे उतार रहे थे, जैसे जिसका फोटो इस बम गुरु के साथ नहीं होगा, उसे इस उपलब्धि के खाते में प्रमोशन नहीं मिलेगा। खैर, यह अच्छी बात रही कि हमारी इस उपलब्धि से नुकसान किसी को नहीं हुआ। जिनके लिए वह बम बनाता था, वह आतंकी संगठन भी उसके बुढ़ापे को देखते हुए उससे किनारा कर चुके थे। वह बेचारा लाहोर की सड़कों पर इत्र बेचकर दिन काट रहा था। अब यहां आ गया तो उसके सब कष्ट मिट जाएंगे। जेल में रहा तो शाही ठाठ और बाहर आ गया तब भी उसके मौज। पांच रुपए में भरपेट भोजन चाहिए तो वह दिल्ली में जमा रह सकता है और खाने के लिए 12 रुपए होंगे तो वह मुंबई का भी मेहमान बन सकता है। एक रुपए में वह भरपेट खाने के साथ कश्मीर की सैर मुफ्त में कर सकता है।
न्यूज टुडे जयपुर में 21 अगस्त, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य
हम विश्वगुरु जो ठहरे
- डॉ. हनुमान गालवा
आतंकवादियों के बम गुरु को पकड़कर हमने भी साबित कर दिया कि हम भी आखिर विश्वगुरु रहे हैं। हमारी यह उपलब्धि अमेरिका को भी मात देने वाली है। अमेरिका को एक आतंकी सरगना को पकडऩे के लिए विशेष सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी। उस कार्रवाई का लाइव प्रसारण वहां के राष्ट्रपति ने देखा। हमारी कार्रवाई का वीडियो देखेंगे तो उनके समझ में आ जाएगा कि आतंकी को पकडऩे के लिए युद्ध करने की जरूरत नहीं है। यह कला सिर्फ हमें ही आती है। हमें पूरा यकीन था कि बम गुरु भारत ही आएगा। ओसामा बिन लादेन ने पाकिस्तान में शरण लेने की जो गलती की थी, उसे वह कतई नहीं दोहराएगा। फिर जब बुढ़ापा सुधारने के लिए भारत आने का उसका खुफिया संदेश पकड़ गया तो हमारा खुफिया तंत्र बेफिक्र हो गया था कि वह यहीं आएगा। उसने हमारे भरोसे को नहीं तोड़ा। उसने भारत भूमि पर प्रवेश किया तो इस उपलब्धि को लपकने के लिए स्पेशल पुलिस की स्पेशल टीम तैयार बैठी थी। उत्साह में हम गिरफ्तारी और किसी वीआईपी की अगवानी में फर्क ही भूल गए। फोटो ऐसे उतार रहे थे, जैसे जिसका फोटो इस बम गुरु के साथ नहीं होगा, उसे इस उपलब्धि के खाते में प्रमोशन नहीं मिलेगा। खैर, यह अच्छी बात रही कि हमारी इस उपलब्धि से नुकसान किसी को नहीं हुआ। जिनके लिए वह बम बनाता था, वह आतंकी संगठन भी उसके बुढ़ापे को देखते हुए उससे किनारा कर चुके थे। वह बेचारा लाहोर की सड़कों पर इत्र बेचकर दिन काट रहा था। अब यहां आ गया तो उसके सब कष्ट मिट जाएंगे। जेल में रहा तो शाही ठाठ और बाहर आ गया तब भी उसके मौज। पांच रुपए में भरपेट भोजन चाहिए तो वह दिल्ली में जमा रह सकता है और खाने के लिए 12 रुपए होंगे तो वह मुंबई का भी मेहमान बन सकता है। एक रुपए में वह भरपेट खाने के साथ कश्मीर की सैर मुफ्त में कर सकता है।
न्यूज टुडे जयपुर में 21 अगस्त, 2013 को प्रकाशित व्यंग्य
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