सोशल मीडिया का समाजवाद
- डॉ. हनुमान गालवा
फेसबुक पर गुरु जी की आई फ्रेंड रिक्वेस्ट ने मेरी दुविधा बढ़ा दी। रिक्वेस्ट कन्फर्म करता तो गुरु जी मेरे फ्रेंड हो जाते और कन्फर्म नहीं करता गुरु-शिष्य संबंधों में खटास आ जाने का अंदेशा बना रहता। जब कोई विकल्प नहीं दिखा तो मैंने गुरु जी की फ्रेंड रिक्वेस्ट पर कन्फर्म ऑप्शन पर क्लिक कर दिया। अब फेसबुक पर गुरु जी फ्रेंड बन गए हैं। फेसबुक ने गुरु-शिष्य ही नहीं, बल्कि तमाम रिश्तों को समतल कर दिया। अब फेसबुक पर बेटा, पत्नी, बहन-भाई, माता-पिता या गुरु-शिष्य सभी के सभी फ्रेंड हैं। सोशल मीडिया की चौपाल पर आकर रिश्ते अपने आप समतल हो जाते हैं। रिश्तों का यह एकीकरण ही असल में समाजवाद है।
वैसे भी समाजवाद अब केवल सोशल मीडिया पर बचा है। चूंकि धरती पर समाजवाद मुलायमवाद में कनवर्ट हो चुका है। लिहाजा सोशल मीडिया के समाजवाद से ही कुछ उम्मीदें बची हैं। सोशल मीडिया के समाजवाद ने रिश्तों के झंझट से पूरी तरह मुक्ति दिला दी है। दरअसल, रिश्तों की टेंशन ही समाजवाद की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। इस रोड़े को सोशल मीडिया की चौपाल ने दूर कर दिया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि समाजवाद के अच्छे दिन आने वाले हैं। आज रिश्ते समतल हुए हैं, तो कल हमारे संकट भी समतल होंगे। लाइक-अनलाइक के ऑप्शन की तरह जीवन में भी दो ही ऑप्शन बचेंगे- हैप्पी और अनहैप्पी। इन ऑप्शन को शेयर करके अपने फ्रेंड के लाइक-अनलाइक के तराजू पर अपनी पीड़ा तौलकर दिल को कुछ तसल्ली दी जा सकती है। सोशल मीडिया ने जिस तरह तमाम सामाजिक-धार्मिक रिश्तों को समेटकर एक ही रिश्ते (फ्रेंड) में परिवर्तित कर दिया है, तो क्या इसी तर्ज पर समस्याओं के पिटारे को समेटा नहीं जा सकता है? स्कूलों का एकीकरण हो रहा है, दलों का विलीनीकरण हो रहा है तो समस्याओं का समानीकरण क्यों नहीं होना चाहिए? योजना आयोग के वास्तु दोष के निवारण के लिए नाम बदलकर नीति आयोग बनाया गया। अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में वास्तुदोष दिखने लगा है, तो उसके निवारण के उपाय तलाशे जाने लगे हैं। इन तमाम आयोगों को भी सोशल मीडिया के समाजवाद की चक्की में डालकर एक ही प्रॉडक्ट बनाया जा सकता है। इस प्रॉडक्ट को लाइक-अनलाइक के मानदंडों के आधार पर अच्छे दिनों के अनुमान का मास्टर प्लान तैयार किया जा सकता है।
डेली न्यूज जयपुर में 4 अप्रेल, 2015 को प्रकाशित व्यंग्य - सोशल मीडिया का समाजवाद
http://dailynewsnetwork.epapr.in/472381/Daily-news/04-04-2015#page/6/2 http://dailynewsnetwork.epapr.in/472381/Daily-news/04-04-2015#page/6/2
फेसबुक पर गुरु जी की आई फ्रेंड रिक्वेस्ट ने मेरी दुविधा बढ़ा दी। रिक्वेस्ट कन्फर्म करता तो गुरु जी मेरे फ्रेंड हो जाते और कन्फर्म नहीं करता गुरु-शिष्य संबंधों में खटास आ जाने का अंदेशा बना रहता। जब कोई विकल्प नहीं दिखा तो मैंने गुरु जी की फ्रेंड रिक्वेस्ट पर कन्फर्म ऑप्शन पर क्लिक कर दिया। अब फेसबुक पर गुरु जी फ्रेंड बन गए हैं। फेसबुक ने गुरु-शिष्य ही नहीं, बल्कि तमाम रिश्तों को समतल कर दिया। अब फेसबुक पर बेटा, पत्नी, बहन-भाई, माता-पिता या गुरु-शिष्य सभी के सभी फ्रेंड हैं। सोशल मीडिया की चौपाल पर आकर रिश्ते अपने आप समतल हो जाते हैं। रिश्तों का यह एकीकरण ही असल में समाजवाद है।
वैसे भी समाजवाद अब केवल सोशल मीडिया पर बचा है। चूंकि धरती पर समाजवाद मुलायमवाद में कनवर्ट हो चुका है। लिहाजा सोशल मीडिया के समाजवाद से ही कुछ उम्मीदें बची हैं। सोशल मीडिया के समाजवाद ने रिश्तों के झंझट से पूरी तरह मुक्ति दिला दी है। दरअसल, रिश्तों की टेंशन ही समाजवाद की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। इस रोड़े को सोशल मीडिया की चौपाल ने दूर कर दिया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि समाजवाद के अच्छे दिन आने वाले हैं। आज रिश्ते समतल हुए हैं, तो कल हमारे संकट भी समतल होंगे। लाइक-अनलाइक के ऑप्शन की तरह जीवन में भी दो ही ऑप्शन बचेंगे- हैप्पी और अनहैप्पी। इन ऑप्शन को शेयर करके अपने फ्रेंड के लाइक-अनलाइक के तराजू पर अपनी पीड़ा तौलकर दिल को कुछ तसल्ली दी जा सकती है। सोशल मीडिया ने जिस तरह तमाम सामाजिक-धार्मिक रिश्तों को समेटकर एक ही रिश्ते (फ्रेंड) में परिवर्तित कर दिया है, तो क्या इसी तर्ज पर समस्याओं के पिटारे को समेटा नहीं जा सकता है? स्कूलों का एकीकरण हो रहा है, दलों का विलीनीकरण हो रहा है तो समस्याओं का समानीकरण क्यों नहीं होना चाहिए? योजना आयोग के वास्तु दोष के निवारण के लिए नाम बदलकर नीति आयोग बनाया गया। अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में वास्तुदोष दिखने लगा है, तो उसके निवारण के उपाय तलाशे जाने लगे हैं। इन तमाम आयोगों को भी सोशल मीडिया के समाजवाद की चक्की में डालकर एक ही प्रॉडक्ट बनाया जा सकता है। इस प्रॉडक्ट को लाइक-अनलाइक के मानदंडों के आधार पर अच्छे दिनों के अनुमान का मास्टर प्लान तैयार किया जा सकता है।
डेली न्यूज जयपुर में 4 अप्रेल, 2015 को प्रकाशित व्यंग्य - सोशल मीडिया का समाजवाद
http://dailynewsnetwork.epapr.in/472381/Daily-news/04-04-2015#page/6/2 http://dailynewsnetwork.epapr.in/472381/Daily-news/04-04-2015#page/6/2