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सरपंच पद का फैमिली पैक
डॉ. हनुमान गालवा
आठवीं पास के अड़ंगे ने महिलाओं के लिए आरक्षित सरपंच पद को एसपी यानी सरपंच पति के प्रभाव से मुक्ति दिला दी है। इसे महिला सशक्तीकरण का नया आयाम माना जा सकता है। आठवीं पास नई बीनणी को सरपंच पद का प्रत्याशी बनाया, तो उसके साथ सरपंचाई का पैनल स्वत: ही जुड़ गया। पहले महिला के लिए आरक्षित सरपंच पद की प्रत्याशी के पति को स्वाभाविक रूप से अनिर्वाचित सरपंच मान लिया जाता था। अब सरपंच पद पत्नी-पति के जोड़े प्रभाव से बाहर निकलकर फैमिली पैक में तब्दील हो गया है। सरपंच और सरपंचाई के पैनल में अब पत्नी-पति के जोड़े के दिन लद चुके हैं।
अब बहू-ससुर, भाभी-देवर, बहू-जेठ, बेटी-बाप, पोती-दादा....आदि कई प्रभावशाली विशेषण जुड़ गए हैं, जो निर्वाचित सरपंच की भूमिका को कागजी कार्रवाई तक समेटकर खुद सरपंचाई करेंगे। सरंपचाई के इस फैमिली पैक ने महिला सशक्तीकरण के साथ शब्दावली को भी विस्तार दिया है। पहले एसपी यानी सरपंच पति होते थे। अब सरपंच ससुर, सरपंच देवर, सरपंच जेठ, सरपंच दादा, सरपंच पिता, सरपंच काका नए शब्द प्रचलन में आ गए। शब्दकोश का विस्तार हो रहा है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि महिलाओं की ताकत भी बढ़ेगी। सरपंचाई का प्रसाद पति परमेश्वर से बंटते-बंटते पूरे परिवार में बंटने लगा है, तो स्वीकारा जाना चाहिए कि नारी शक्ति का प्रभाव विस्तार पा रहा है। पहले महिला सरपंच चुनी जाती थी, तो केवल पति का महिमामंडन होता था। अब चुनी हुई महिला सरपंच पूरे परिवार के प्रभाव को प्रतिष्ठित करेगी। सरपंच-पति के प्रभाव से सरपंच पद को निजात दिलाने से जो फैमिली पैक सामने आया है, उससे लोकतंत्र में सामूहिक नेतृत्व की स्वीकार्यता बढ़ेगी। इससेे लोकतंत्र का नेटवर्क स्वत: ही अपनी आदर्श स्थिति से कनेक्ट हो जाएगा। पहले महिला सरपंच जीतती थी, तब केवल पति परमेश्वर के अच्छे दिन आते थे। अब पढ़ी-लिखी नई बीनणी सरपंच बनेगी, तो पूरे परिवार के अच्छे दिन आएंगे। गांव में सरपंचाई से किसी एक पूरे परिवार के अच्छे दिन आएंगे, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि पूरे गांव के अच्छे दिन आने में भी अब कोई ज्यादा विलंब नहीं होगा। सरकार ने पति का आधिपत्य तोडऩे के लिए आठवीं पास का पास फेंका, लेकिन इस पासे को फैमिली पैक में तब्दील करके सरपंचाई पर पूरे परिवार का आधिपत्य स्थापित कर दिया।
डेली न्यूज, जयपुर में 19 जनवरी, 2015 प्रकाशित व्यंग्य- सरपंच पद का फैमिली पैक