पिटने वाले की तलाश
- डॉ. हनुमान गालवा
सामंतशाही के एक किस्से का लोकशाही में रुपांतरण करके पिटी हुई पार्टी
अपने युवराज को पिटने से बचा सकती है। आज के युवराज की तरह ही रियासतीकाल
में भी युवराजों की गलती अपने सिर लेकर लाज बचाने की हमारी समृद्ध
परिपाटी रही है। राजशाही चली गई। सामंतशाही सिमट गई, लेकिन लोकशाही में
भी लाच बचाने की इस परिपाटी का बखूबी निर्वाह किया जाता रहा है। उन दिनों
अजमेर के एक प्रतिष्ठत स्कूल में केवल राजा-महाराजा और ठिकानेदारों के ही
राजकुमार पढ़ते थे। शेखावटी के एक ठिकानेदार के राजकुमार को दाखिला तो
मिल गया, लेकिन पढ़ाई में कमजोर होने के कारण रोज पिटना पड़ता था। बात
ठिकानेदार तक पहुंची। चिंतन-मनन हुआ और राजकुमार को पिटने से बचाने की
रणनीति तय हुई। तय रणनीति के मुताबिक एक बच्चे का चयन किया गया। उसे
अजमेर के उस प्रतिष्ठित स्कूल में ले जाया गया। स्कूल प्रबंधन ने दाखिला
देने से पहले पूछताछ की तो बताया गया कि यह बच्चा पढऩे के लिए नहीं आया
है। यह आपके स्कूल में रहेगा। अमुक ठिकाने के राजकुमार कोई गलती करे तो
उसे पीटने के बजाय इसकी पिटाई कर दीजिए। गलती की सजा तो मिलनी ही चाहिए
ना! सजा को रोका या कम नहीं किया जा सकता है, लेकिन सजा कोई और भुगत ले
तो दोषी को राहत दी जा सकती है। उस समय तो पिटने के लिए आए बच्चे को लेकर
आने वालों को डांट-डपट कर रवाना कर दिया, लेकिन लोकशाही में युवराज के
बदले पिटने वाले चेहरे की तलाश की जा रही है। हालांकि हर बार युवराज का
गलती को अपने सिर लेने की हौड़ मची रहती है, लेकिन इस बार हालात कुछ
ज्यादा ही खस्ता होने से अदने से कार्यकर्ता भी आंख दिखाने लगे हैं।
हालांकि आंख दिखाने वालों को बाहर का रास्ता दिखाकर कड़ा संदेश दिया गया,
लेकिन इससे भी बात बन नहीं रही है। असंतुष्टों का दुस्साहस केवल आंख
दिखाने तक ही सीमित नहीं है। वे सीधे-सीधे आलाकमान की कॉलर खींचने लगे
हैं। युवराज को ललकारने लगे हैं। युवराज के गुरु भी नालायक निकले। युवराज
को दुल्हा बनाते-बनाते खुद ही दुल्हा बन बैठे। किसकी नीयत कब खराब हो
जाए? इसे आंकने या मापने का कोई पैरामीटर नहीं है। अन्यथा, नीयत का भी
पूर्वानुमान लगाकर डैमेज एंड कंट्रोल संभव है। नीयत का पता लगाने का कोई
यंत्र भले ही नहीं बना हो, लेकिन युवराज के दोष अपने सिर लेने वाले की
तलाश और चयन के लिए लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन से कोई अलग दूसरा
फार्मूला ईजाद किया जा सकता है। दूसरा फार्मूला इसलिए जरूरी है, क्योंकि
पहले के तमाम फार्मूले पिट चुके हैं। अब यदि युवराज के बदले पिटने वाले
के चयन में भी कोई चूक रह गई तो युवराज को पिटने से कोई नहीं बचा सकेगा।
कोई उपाय नहीं हो तो राज घरानों में रोधूली (रोने वाली) की आउटसोर्सिंग
की तर्ज पर पिटने वाले की आउटसोर्सिंग की जा सकती है। पिटने की
चैम्पियनशिप भी आयोजित करवाई जा सकती है। 'पिटोकड़ा शिरोमणीÓ का नया पद
सृजित कर युवराज को पिटने से बचाने की स्थाई व्यवस्था की जा सकती है।
न्यूज टुडे, जयपुर में 18 जून, 2014 को प्रकाशित व्यंग्य