Friday, 24 January 2014
Wednesday, 22 January 2014
डॉ. हनुमान - गालवा मरने को मेड़तिया, राज करने को जोधा
http://epaper.newstodaypost.com/218213/Newstoday-Jaipur/23-01-2014#page/5/1
मरने को मेड़तिया, राज करने को जोधा
- डॉ. हनुमान गालवा
हाल ही में राजस्थान में सत्ता में वापसी के लिए हाथ मलते रह गई हाथ वाली
पार्टी के हाथ में फिर सत्ता की खुजली चलने लगी है। आशा की तरह यह खुजली
भी राजनीति का अमर धन है। सत्ता से धक्के देकर बाहर निकाले जाने पर भी
सत्ता की खाज मिटती नहीं। खुजली चलती रहती है। इसका उपचार तो केवल और
केवल सत्ता ही है। सत्ता के लिए चलने वाली खुजली सत्ता में आकर ही मिटती
है और सत्ता से आउट होते ही फिर चलने लगती है। नेताओं की यह खुजली अब तो
आम आदमी को भी लगने लग गई। नेताओं को होने वाली खुजली सभी को होने लगेगी
तो देश में सभी अपनी हथेली खुजलाते दिखेंगे। खुजली का स्कोप बढ़ेगा तो
योगगुरु भी खुजली से सत्ता पाने का कोई योग भी सिखा सकते हैं। पहले भी
नाखून रगडऩे से बाल काले करने की कला बताई तो सफेदी को कालिमा में कनवर्ट
करने कोशिश में सभी नाखून रगडऩे लगे। एकबारगी ऐसा लगने लगा, जैसे हर
समस्या के निदान का उपाय नाखून रगडऩे में ही निहित है। फिलहाल, इस बार
सत्ता के मंजे हुए खिलाडिय़ों ने हाथ खड़े कर दिए। नतीजतन सत्ता की खाज
मिटाने के लिए पार्टी की गाड़ी में नए खिलाडिय़ों को जोत दिया गया। पार्टी
की यह दशा देखकर एक युवा नेता से चुप नहीं रहा गया। कहने लगे कि टाबर ही
घर चला लेते तो बाबा को बूढ़ी क्यों लानी पड़ती? बात तो उनकी सोलह आने
खरी है, लेकिन उनको यह कौन समझाए कि राजनीति 'मरने को मेड़तिया, राज करने
को जोधाÓ मंत्र से चलती है। सिस्टम बदलने के नारे में युवराज ने भी साफ
कर दिया कि अब रेस में दौडऩे वाले घोड़ों की जरूरत है। थकते भी दौडऩे
वाले ही हैं। मतलब साफ है कि सरकार चलाने वाले घोड़े अलग होंगे।
रियासतकालीन राजस्थान में भी जंग में मेड़तियों को कमर कसने को कहा जाता
था। घाव भी रणक्षेत्र में जाने वालों के ही लगते। जब गढ़ जीत लिया जाता
था तो राजतिलक के समय बिना घाव वाले सुंदर राजकुमारों को तलाशा जाता। अब
राजकुमार चुनने का तरीका बदला है, लेकिन परिपाटी वही है। पहले भी हाथ
वाली पार्टी के इसी जादूगर को जनता ने अंगूठा बता दिया था, तब जनता की
अंगुली थमकार हाथ पकडऩे के लिए किसान नेता को कमान सौंपी गई थी। उस किसान
नेता ने पार्टी की कमान थामते ही कह दिया कि उसे तो एयरपोर्ट यानी सत्ता
की दहलीज तक बैलगाड़ी हांकनी है। हेलीकॉप्टर में बैठने यानी सरकार की
कमान संभालने की बारी आएगी, तब कोई दूसरा आएगा। लिहाजा, उसने बुद्धिमानी
से काम लिया। चुनाव में टिकिट दिलवाने और कटवाने की खेती की और अपने
हिस्से की फसल काट ली। अब युवाओं की बारी है। अब युवा मेड़तिया की
भूमिका तक सीमित रहेंगे या जोधा बनकर राजनीति की परिपाटी को तोड़ेंगे?
वैसे राज पाने और चलाने के लिए मेड़तिया और जोधा दोनों की ही अहमियत है।
न्यूज टुडे जयपुर में 23 जनवरी, 2014 को प्रकाशित व्यंग्य
मरने को मेड़तिया, राज करने को जोधा
- डॉ. हनुमान गालवा
हाल ही में राजस्थान में सत्ता में वापसी के लिए हाथ मलते रह गई हाथ वाली
पार्टी के हाथ में फिर सत्ता की खुजली चलने लगी है। आशा की तरह यह खुजली
भी राजनीति का अमर धन है। सत्ता से धक्के देकर बाहर निकाले जाने पर भी
सत्ता की खाज मिटती नहीं। खुजली चलती रहती है। इसका उपचार तो केवल और
केवल सत्ता ही है। सत्ता के लिए चलने वाली खुजली सत्ता में आकर ही मिटती
है और सत्ता से आउट होते ही फिर चलने लगती है। नेताओं की यह खुजली अब तो
आम आदमी को भी लगने लग गई। नेताओं को होने वाली खुजली सभी को होने लगेगी
तो देश में सभी अपनी हथेली खुजलाते दिखेंगे। खुजली का स्कोप बढ़ेगा तो
योगगुरु भी खुजली से सत्ता पाने का कोई योग भी सिखा सकते हैं। पहले भी
नाखून रगडऩे से बाल काले करने की कला बताई तो सफेदी को कालिमा में कनवर्ट
करने कोशिश में सभी नाखून रगडऩे लगे। एकबारगी ऐसा लगने लगा, जैसे हर
समस्या के निदान का उपाय नाखून रगडऩे में ही निहित है। फिलहाल, इस बार
सत्ता के मंजे हुए खिलाडिय़ों ने हाथ खड़े कर दिए। नतीजतन सत्ता की खाज
मिटाने के लिए पार्टी की गाड़ी में नए खिलाडिय़ों को जोत दिया गया। पार्टी
की यह दशा देखकर एक युवा नेता से चुप नहीं रहा गया। कहने लगे कि टाबर ही
घर चला लेते तो बाबा को बूढ़ी क्यों लानी पड़ती? बात तो उनकी सोलह आने
खरी है, लेकिन उनको यह कौन समझाए कि राजनीति 'मरने को मेड़तिया, राज करने
को जोधाÓ मंत्र से चलती है। सिस्टम बदलने के नारे में युवराज ने भी साफ
कर दिया कि अब रेस में दौडऩे वाले घोड़ों की जरूरत है। थकते भी दौडऩे
वाले ही हैं। मतलब साफ है कि सरकार चलाने वाले घोड़े अलग होंगे।
रियासतकालीन राजस्थान में भी जंग में मेड़तियों को कमर कसने को कहा जाता
था। घाव भी रणक्षेत्र में जाने वालों के ही लगते। जब गढ़ जीत लिया जाता
था तो राजतिलक के समय बिना घाव वाले सुंदर राजकुमारों को तलाशा जाता। अब
राजकुमार चुनने का तरीका बदला है, लेकिन परिपाटी वही है। पहले भी हाथ
वाली पार्टी के इसी जादूगर को जनता ने अंगूठा बता दिया था, तब जनता की
अंगुली थमकार हाथ पकडऩे के लिए किसान नेता को कमान सौंपी गई थी। उस किसान
नेता ने पार्टी की कमान थामते ही कह दिया कि उसे तो एयरपोर्ट यानी सत्ता
की दहलीज तक बैलगाड़ी हांकनी है। हेलीकॉप्टर में बैठने यानी सरकार की
कमान संभालने की बारी आएगी, तब कोई दूसरा आएगा। लिहाजा, उसने बुद्धिमानी
से काम लिया। चुनाव में टिकिट दिलवाने और कटवाने की खेती की और अपने
हिस्से की फसल काट ली। अब युवाओं की बारी है। अब युवा मेड़तिया की
भूमिका तक सीमित रहेंगे या जोधा बनकर राजनीति की परिपाटी को तोड़ेंगे?
वैसे राज पाने और चलाने के लिए मेड़तिया और जोधा दोनों की ही अहमियत है।
न्यूज टुडे जयपुर में 23 जनवरी, 2014 को प्रकाशित व्यंग्य
Subscribe to:
Posts (Atom)